सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

ब्लॉगर जान गये हैं.. नामवर सिंह कौन हैं ..


  •         इलाहाबाद संगोष्ठी के बाद हिन्दी के सुप्रसिद्ध आलोचक श्री नामवर सिंह हिन्दी ब्लॉगर्स के लिये अब नये नहीं रहे । चिठ्ठा शब्द की उत्पत्ति को लेकर उनका बयान इन दिनों चर्चा में है । साहित्य से जुड़े लोग तो खैर उन्हे जानते ही थे ।साहित्यकारों के बीच समय समय पर वे अपने विचार प्रकट करते हैं । यहाँ प्रस्तुत है सापेक्ष के सम्पादक महावीर अग्रवाल द्वारा आलोचना पर उनसे बातचीत का एक अंश । लेखकों और आलोचकों के बारे में प्रस्तुत इन विचारों को हम ब्लॉग लेखकों,पाठको और आलोचकों से जोड़कर भी देख सकते हैं
  • महावीर अग्रवाल: नए आलोचकों में आपको जिन आलोचकों में कुछ सम्भावनायें नज़र आती हैं उनके बारे में कुछ बताइये साथ ही यह भी कि आलोचक का धर्म क्या होना चाहिये ? 
  • नामवर सिंह : कुछ आलोचक ऐसे होते हैं जो कविता के एक एक शब्द को पकड़कर बाल-की-खाल निकालते हुए उसकी बारीकियाँ समझाते चले जाते हैं । बड़ा बारीक काम करते हैं वे । सराहने को जी करता है। आचार्य शुक्ल ने भी बिहारी के सन्दर्भ में कहा था " कुछ कवि ऐसे होते हैं जो कविता में बड़ी नक्काशी का काम करते हैं पर बिहारी को वही पसन्द करेगा जो हाथी दाँत पर किये हुए काम को लेकर घंटों सराहता हो । लेकिन जो रस में थोड़ी देर डूबना चाहता हो उसको बिहारी से संतोष नही होगा । उसे रीतिकाल के कवियों में देव को ,पद्माकर को या मतिराम को देखना पड़ेगा और अगर कुछ ऊँची भूमि पर सँवरण करना चाहता है तो उसे तुलसी के पास जाना पड़ेगा " इसलिये आलोचक भी ऐसे हैं जो बाल की खाल निकालते हैं । एक एक शब्द के लक्ष्यार्थ और व्यंग्यार्थ की क्या -क्या बारीकी निकालते रहते हैं । यह काम भी ज़रूरी है यहाँ  एक बार मैं फिर कहूंगा कि विश्लेषण की दृष्टि से मार्क्सवादी आलोचना निश्चय ही अधिक समृद्ध है । 
  •                   आलोचक का धर्म है कृतियों  को बहुत ध्यान से पढ़ना , डूबकर पढ़ना । सटीक विष्लेषण और व्याख्या करके रचना के अंत:करण तक पहुँचना । अपने साथ पाठक के भी भीतर पहुँचाना । यह बुनियादी चीज़ हम लोग भूलते जा रहे हैं ,जिसे टृक वाले और आटोरिक्शा वाले  भी जानते हैं । उनके पीछे लिखा रहता है " देखो मगर प्यार से "रचना को , पुस्तक को प्यार से देखना ज़रूरी है । यह बुनियादी चीज़ है जिससे आलोचना पैदा होती है । कोई नई रचना उभर रही है । नया लेखक सामने आ रहा है , अच्छा लिख रहा है औउसकी उपेक्षा हो रही है तो उस पर ध्यान देना चाहिये । यह आलोचना का धर्म है । प्रत्येक आलोचक अपने संघर्ष और अपनी साधना से ही अपने सच को अर्जित करता है ।
  • नामवर जी के इन विचारों पर आपका क्या कहना है - शरद कोकास                                                 
(चित्र मे नामवर सिंह से बात करते हुए महावीर अग्रवाल , शरद कोकास के अलबम से )