शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

7.प्रेम और इसके प्राकृतिक एवं सामाजिक अंतर्संबंध

 


तो हे मानव श्रेष्ठों,

समय फिर हाज़िर है...

एक पुरानी जिज्ञासा थी एक भाई की..
प्रेम और इसके प्राकृतिक एवं सामाजिक अंतर्संबंध और अंतर्विरोधों के संबंध में...
समय ने सोचा क्यूं न इस बार इस पर ही माथापच्ची की जाए..
प्रेम की भावना मनुष्यों के दिमाग़ और उसके सभ्यतागत सामाजिक विकास की पैदाइश है। पर हम प्राकृतिक सापेक्षता से अपनी चर्चा की शुरुआत करेंगे।


प्रकृति के नज़रिये से देखा जाए तो वहां यह आसानी से देखा और समझा जा सकता है कि प्रकृति की हर शै एक दूसरे से आबद्ध है, अंतर्संबंधित है। प्रकृति में श्रृंखलाबद्ध तरीके से कुछ घटकों का विनाश, कुछ घटकों के निर्माण के लिए निरंतर चरणबद्ध होता रहता है। यहां विचार और भावना को ढूंढ़ना कोरी भावुकता है।यदि जैविक प्रकृति के नज़रिए से देखें तो हर जीव अपनी जैविक उपस्थिति को बनाए रखने के लिए प्रकृति से सिर्फ़ जरूरत और दोहन का रिश्ता रखता है, और अपनी जैविक जाति की संवृद्धि हेतु प्रजनन करता है।

प्रजनन की इसी जरूरत के चलते कुछ जीवों के विपरीत लिंगियों कोसाथ रहते और कई ऐसे क्रियाकलाप करते हुए देखा जा सकता है जिससे उनके बीच एक भावनात्मक संबंध का भ्रम पैदा हो सकता है, हालांकि यह सिर्फ़ प्रकॄतिजनित प्रतिक्रिया/अनुक्रिया का मामला है। कुछ विशेष मामलों में जरूर यह अहसास हो सकता है कि कुछ भावविशेषों तक यह अनुक्रियाएं पहुंच रही हैं।मनष्य भी प्रकृति की ही पैदाइश है, इसलिए प्रकॄतिजनित स्वाभाविक प्रतिक्रिया/अनुक्रिया के नियमों से यह भी नाभिनालबद्ध है। परंतु बात यहीं खत्म नहीं हो जाती, वरन् यहीं से शुरू होती है।

 

अब थोड़ा सा मनुष्य और प्रकृति के अंतर्द्वन्दों को देखें...
मनुष्य के मनुष्य-रूप में विकास को देखें, तो यह इसलिए संभव हो पाया कि इस प्राणी ने प्रकृति के नियमों में बंधने के बजाए, इस नाभिनालबद्धता को चुनौती दी। प्रकृति के अनुसार ढ़लना नहीं वरन् प्रकृति को अपने अनुकूल बनाने के प्रयास किए, प्रकृति के अंतर्जात नियमों को समझना और उन्हें अपनी जरूरतों के अनुसार काम में लेना शुरू किया। इस लंबी प्रक्रिया के दौरान ही मनुष्य की चेतना का विकास हुआ और वह आज की सोचने-समझने की शक्ति तक पहुंचा।


यानि कि प्रकृति से विलगता के प्रयासों ने मनुष्य को सचेतन प्राणी बनाया और इसकी चेतना ने प्रकृति के साथ अपने अंतर्संबंधों को समझ कर पुनः इसे प्रकृति की और लौटना सिखाया। मनुष्य और प्रकृति के आपसी संबंधों के अंतर्गुथन को समझने या निर्धारित करते समय, इस अंतर्विरोध को ध्यान में रखना चाहिए।