महावीर अग्रवाल :
रामविलास जी यह बताइये कि क्या आलोचना का रचनाकार और समाज पर सकारा त्मक प्रभाव पडता है ?
किसी भी देश के सांस्कृतिक विका स में आलोचक और आलोचना की क्या भू मिका होती है ? रामविलासशर्मा :
यह सब आलोचकों के विवेक और उनकी शक्ति पर निर्भर करता है .
समाज पर प्रभाव दो तर ह से पडता है .
साहित्य का विवेचन करते हुए आलोचक सामाजिक समस्याओं पर लिखता है और साहित्य से अ लग सीधे सामाजिक समस्याओं पर भी लिखता है .
भारतेन्दु के नाटक ,
लेख और निबन्ध की हमारे देश के सांस्कृ तिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है .
इसके दो कारण हैं .
एक तो यह कि उन्होनें देश और समाज की महान ऐतिहासिक आवश्यकता पहचानी और उसे पूरा किया .
दूसरा यह कि उन्होनें जो कुछ किया वह नि :
स्वार्थ भाव से ,
देश और जनता के लिये ,
हिन्दी भाषा और साहित्य के लिये अपने अहंकार की तुष्टी के लिये नहीं ,
अपना वन्दन अभिनन्दन कराने के लिये नहीं .'
भारत दुर्दशा '
जैसे नाटकों और जातीय संगीत '
जैसे निबन्धों में उन्होनें देश की दशा पर ध्यान केन्द्रित किया .
भारतेन्दु ने नाटक पर एक विस्तृत निबन्ध लिखकर आधुनिक हिन्दी आलोचना को जन्म दिया .
साहित्य को उनकी देन है राष्ट्रीय विचारधारा .
इस प्रकार उन्होने साहित्य की विषय वस्तु में युगांतरकारी परिवर्तन किया .
जिस लेखक की सोच ऐसी होगी काम ऐसा होगा उसकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी .
म हावीर प्रसाद द्विवेदी का ग्रंथ '
सम्पत्ति शास्त्र '
इसका एक अप्रतिम उदाहरण है .
द्विवेदी जी ने हिन्दी को मानक रूप दिया .
उस समय हिन्दी का एक लोकप्रिय पत्र था '
मतवाला '.
यह एक ऐसा महत्वपूर्ण पत्र था जिसमे निराला और उग्र जैसे लेखक लिखते थे .
उसमे साहित्य ,
समाज ,
और राजनीति पर बहुत सामग्री होती थी .
ज्ञान के बिना आदमी भावों के वश में होकर गलत रास्ते पर चल सकता है .
आलोचना ज्ञानचक्षु है .
जैसे कर्म के लिये ज्ञान का महत्व है वैसे ही साहित्य और समाज की प्रगति के लिये आलोचना का महत्व है . '
(
सापेक्ष से साभार:
शरद कोकास )