शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

"समुद्र चांद और मैं .". मैं यानि कवि अशोक सिंघई

                                                  अशोक सिंघई का पाँचवाँ काव्य संग्रह
                                                     ‘समुद्र, चाँद और मैं’ लोकार्पित

विगत दिनों शीर्ष कवि व समर्थ समालोचक डॉ0 केदार नाथ सिंह भिलाई आये थे । 75 वर्षीय केदार जी अपनी 90 वर्षीय माता जी से मिलने  कोलकाता जा रहे थे , बीच में थोड़ा सा समय मिला तो छत्तीसगढ़ के मित्रों से मिलने के लिये ठहर गये ।  इस अवसर पर उनका काव्यपाठ हुआ और दुर्ग- भिलाई के मित्रों ने समकालीन कविता पर उनसे बातचीत की । इसी दिन केदार जी को शलाका सम्मान दिये जाने की भी घोषणा हुई थी ।जब उन्हे इस बात की बधाई  हम लोगों ने दी तो उन्होने कहा कि इस घोषणा से ज़्यादा प्रसन्नता मुझे आप लोगों से मिलने की है । केदार जी लगभग दो दिन यहाँ रहे , हम लोगों के साथ घूमते-फिरते रहे ,गपियाते रहे ।  
                       केदार जी ने  इस अवसर पर लिट्ररी क्लब, भिलाई इस्पात संयंत्र के अध्यक्ष व राजभाषा प्रमुख श्री अशोक सिंघई के मेधा बुक्स, नई दिल्ली से प्रकाशित पाँचवें काव्य संग्रह ‘समुद्र, चाँद और मैं’ का लोकार्पण ‘सिंघई विला’ में किया। इस सादे किन्तु गरिमामय आयोजन की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध गाँधीवादी चिन्तक व कानूनविद् श्री कनक तिवारी ने की। प्रसंगवश अशोक सिंघई के पहले प्रकाशन प्रदीर्घ कविता ‘अलविदा बीसवीं सदी’ का लोकार्पण फरवरी, 2000 में विश्व पुस्तक मेला में एवं तीसरे काव्य संग्रह ‘सम्भाल कर रखना अपनी आकाशगंगा’ का भी लोकार्पण छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर में नवम्बर, 2004 में प्रख्यात साहित्यकार स्वर्गीय श्रीकान्त वर्मा एवं कीर्तिशेष सम्पादक, कवि व उपन्यासकार गुलशेर अहमद शानी की स्मृति में आयोजित ‘कविता की पंचाट‘ में श्री केदार नाथ सिंह ने ही किया था।
श्री केदार नाथ सिंह ने अशोक सिंघई को अपना प्रिय कवि बताते हुये कहा कि प्रगतिशील चेतना से युक्त अशोक उन विरले कवियों में से हैं जिनकी नई कविता में दुर्लभ लयात्मकता है। हिंदी की नई कविता में एक खास तरह की गीतात्मकता को इन्होंने बचाये रखा है। ये उम्र में मुझसे बहुत छोटे हैं, अतः इनके पास अभी साहित्य में सक्रिय बने का वक्त है और क्षमता भी। ये साहित्य में कार्यरत रहें, जीवन में यह मेरी कामना है ।
                      अध्यक्षीय वक्तव्य में श्री कनक तिवारी ने कहा कि ‘समुद्र, चाँद और मैं’ मुझे आकर्षित करता है और अँग्रेज़ी का मेरा सर्वाधिक प्रिय कवि कालरिज़ बरबस मुझे याद आता है जिन्होंने सागर पर सर्वश्रेष्ठ कवितायें विश्व साहित्य को दी हैं। चाँदनी रात में समुद्र के किनारे मनुष्य रूमानी हो जाता है पर अशोक अपनी ऐसी बौद्धिकता को बचाये रखते हैं जो भावुकता से पगी रहती है। अशोक का यह सौभाग्य है कि उन्हें केदारजी प्राप्त होते रहते हैं। अमूमन कवि अपने क्लाईमेक्स में मर जाता है पर केदारजी के साथ यह नहीं है, अशोक के साथ भी यही घटे, मेरी शुभकामना है।
                              इस अवसर पर भिलाई-दुर्ग के साहित्यकारों ने कवि केदार को 23 मार्च को प्राप्त होने वाले शलाका सम्मान की बधाई दी तथा उनके दीर्घ व कीर्तिमय जीवन की शुभकामनायें भी दीं। युवा कवि श्री शरद कोकास ने लोकार्पण कार्यक्रम का संचालन किया व इस्पातनगरी भिलाई के साहित्यकारों की ओर से श्री केदार नाथ सिंह का भिलाई पधारने पर और इस आत्मीय आयोजन में उनके तथा समस्त साहित्यकारों के प्रति समय देने के लिये आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर सापेक्ष के संपादक श्री महावीर अग्रवाल, डॉ0 सियाराम शर्मा, डॉ0 तीर्थेश्वर सिंह, प्रलेस अध्यक्ष श्री लोकबाबू, शायर मुमताज़, कवयित्री श्रीमती पुष्पा तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार श्री अजय पाण्डेय आदि संस्कृतिकर्मी उपस्थित थे।
रपट - शरद कोकास