शनिवार, 27 जून 2009

महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कहा था

भविष्य कवि का लक्ष्य इधर ही होगा. अभी तक वह मिट्टी में सने हुए किसानों और कारखाने से निकले हुए मैले मज़दूर को अपने काव्यों का नायक नहीं बनाना चाहता था . वह राज-स्तुति ,वीर-गाथा,अथवा प्रकृति-वर्णन में ही लीन रहता था,परंतु अब वह क्षुद्रों की भी महत्ता देखेगा और तभी जगत का रहस्य सबको विदित होगा. जगत का रहस्य क्या है? इस पर एक ने कहा है कि असाधारणता में यहाँ रहस्य नहीं है .जो साधारण है, वही रहस्यमय है; वही अनंत सौन्दर्य से युक्त है.इसी सौन्दर्य को स्पष्ट कर देना भविष्य कवियों का काम होगा
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(सन 1920 में लिखे निबन्ध "कविता का भविष्य "से )