सोमवार, 13 जुलाई 2009

लन्दन में कवि-गोष्ठी ऐसे होती है.

प्रमोद वर्मा ने कहा था


प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान की ओर से कवि विश्वरंजन द्वारा रायपुर छत्तीसग में 10 एवं 11 जुलाई 2009 को हिन्दी के महत्वपूर्ण आलोचक ,नाटककार,कवि और शिक्षाविद डॉ.प्रमोद वर्मा की स्मृति में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया इस अवसर पर यहाँ प्रस्तुत है दुर्ग ज़िला हिन्दी साहित्य समिति के तुलसी जयंती के कार्यक्रम में 10 वर्ष पूर्व श्री प्रमोद वर्मा द्वारा दिए गए व्याख्यान का लिप्यांतर प्रमोद जी यहाँ तुलसी पर व्याख्यान देने आये थे लेकिन कुछ मू लोगों द्वारा कविता में गद्य की घुसपैठ व्यर्थ है, या छन्दबद्ध कविता ही असली कविता है और मंच के लोकप्रिय कवि ही असली कवि हैं , जैसे निरर्थक प्रश्न उछाले गये , फलस्वरूप प्रमोद जी को तुलसी पर अपना भाषण स्थगित कर उनके प्रश्नों के उत्तर में यह समाधान प्रस्तुत करना पड़ा उनका यह व्याख्यान उनके तेवर और भाषा पर अधिकार की बानगी स्वरूप जस का तस , तीन किश्तों में ब्लॉग ‘आलोचक’ पर प्रस्तुत किया जा रहा है इस व्याख्यान का ध्वन्यांकन से लिप्यांकन किया है शरद कोकास ने । इस व्याख्यान को मई 2001 के ‘अक्षरपर्व’ में श्री ललित सुरजन ने प्रकाशित किया था ,साभार प्रस्तुत है दूसरी किश्त

गद्य में रिदम,तुलसीदास और
प्रेमचन्द की लोकप्रियता,मुक्तिबोध की जनस्वीकृति, ,नीरज की साहित्यिक स्वीकृति और गुलशन नन्दा की बिक्री,जैनेन्द्र की भैंस, लन्दन की कवि गोष्ठी

दूसरी बात ,मैं आपसे कहता हूँ क्या गद्य में रिदम नहीं होता ? क्या बोलते हुए,सामान्य बोलचाल की भाषा में , जैसा हम बोलते हैं उसमें यति और गति नहीं होती क्या ? हम कभी मन्द स्वर में ,कभी मध्य में कभी तार सप्तक में नहीं बोलते क्या? हमारे बोलने में ये उतार –चढ़ाव नहीं आया करते क्या,हममें से हर एक आदमी अपनी-अपनी तरह से नहीं बोलता? भाषा के साथ तो है ही यह बात । तो कुल मिलाकर यदि आप कहें कि प्रोज़ में रिदम नहीं होता तो मैं इस बात को नहीं मानता ।

कविता में जो रिदम है वह उसके भावों का रिदम है,वह गतिमयता हैतो इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप मात्रिक छन्द लिख रहे हैं,तुकांत लिख रहे हैं या अतुकांत लिख रहे हैं । संस्कृत में तो तमाम कवितायें अतुकांत हैं । तुकांत कविताओं की प्रगति तो हिन्दी ,उर्दू, और इधर की अन्य भाषाओं की कविता में है । ब्रह्म की परिभाषा नहीं हो सकती, ईश्वर क्या है यह नहीं जान सकते तो कविता को कैसे परिभाषित करेंगे ? तो कविता को अपरिभाषित ही रहने दीजिये ।इन चीज़ों का निर्णय नहीं होगा फिलहाल और ये बहस चलती रहेगी ।

अब नीरज और मुक्तिबोध को ही लीजिये । एक को साहित्य में स्वीकृति नहीं मिली,दूसरे को जनस्वीकृति नहीं मिली । मुक्तिबोध को जनस्वीकृति नहीं मिली नीरज को साहित्यिक स्वीकृति नहीं मिली ।मैं आपसे पूछता हूँ कौनसा लेखक आज सबसे ज़्यादा पढ़ा जाता है ? एक ज़माने में गुलशन नन्दा बहुत बड़े लेखक थे । एक संस्करण उनका निकलता था पाँच लाख प्रतियाँ उसकी बिक जाती थीं । तीन बरस बाद आप उसे ढूँढिये नहीं मिलती थी । तीन बरस क्या छह माह बाद नहीं मिलती थी । प्रेमचन्द के कितने संस्करण निकले होंगे ज़रा सोचिये आप । 1920-21 से लिख रहा है जो लेखक और जो आज भी खरीदा,पढ़ा और पढ़ाया जा रहा है,उसकी कितनी कापियाँ बिकी होंगी । सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला कवि ,तुलसीदास है । बावज़ूद इसके हम में से बहुत से कवि मंच में एक-एक लाख में कविता पढ़ जाते हैं कौन अधिक लोकप्रिय है ? लोकप्रियता की कसौटी दर असल क्या है कि आप एक साल में एक लाख पाठकों द्वारा पढ़ लिये गये या एक लाख श्रोताओं द्वारा सुन लिये गये या कि आप सौ साल दो सौ साल पाँच सौ साल या हज़ार साल तक पढ़े और सुने जाते रहे । कौन ज़्यादा लोकप्रिय है ?

तो ये बड़े हवाई शब्द हैं ।इनके कोई मायने नहीं हैं । मुक्तिबोध को जन स्वीकृति मिली हुई है । कौन जन किस जन की बात कर रहे हैं ? वो जन ? आज़ादी के पचास साल बाद भी शर्म नहीं आती हम को स्वीकार करते हुए कि बावन प्रतिशत भारतीय निरक्षर हैं और जो साक्षर हैं उनमें से कितने वास्तविक तौर पर शिक्षित हैं ..यह तो छोड़िये बड़ी बड़ी डिग्रियाँ हासिल करने वालों को भी मैं मात्र साक्षर मानता हूँ ..यह ऐसे लोग हैं । जैनेन्द्र जी से किसीने पूछा था जैनेन्द्र जी यह बताइये अकल बड़ी की भैंस ? जैनेन्द्र जी ने छूटते ही यह प्रश्न किया कि पहले यह बताओ मुझे कि किसकी अकल और किसकी भैंस ? अगर तुम ये कहोगे कि तुम्हारी अकल और मेरी भैंस तो मैं कहूंगा , जैनेन्द्र की भैंस बड़ी है । कुल मिलाकर ये कि किसकी स्वीकृति ?

लन्दन के एक अखबार में पढ़ा कि अमुक अमुक गार्डन में एक कवि गोष्ठी होने वाली है ,जिसमें टिकट लेकर सब आमंत्रित हैं । मैड्रिड पोएटिक सोसायटी की ओर से थी गोष्ठी ,सो टिकट ली और चले गये ।अद्भुत था वहाँ । हर महीने वह गोष्ठी होती थी जिसमें सौ-दो सौ कविता प्रेमी इकठ्ठे होते थे ।टी.वी.और बी.बी.सी. के तीन अच्छे उद्घोषक आमंत्रित होते थे जो उस महीने छपी श्रेष्ठ्तम पाँच –पाँच कविताओं का पाठ करते थे ।उसके बाद तीन आमंत्रित कवि अपनी कविताओं का पाठ करते थे ।तो कुछ लोगों को मालूम हुआ कि यह भारतीय आया है , यह भी कवि है । अब यह ब्राउन चेहरा तो वहाँ अलग से पहचान लिया जायेगा , तो उन्होने हमारा परिचय-वरिचय दिया और जब कॉफी ब्रेक हुआ तो उन्होने पूछा “ आपके यहाँ काव्यपाठ होता है? “ “हाँ” मैने कहा “हमारे यहाँ तो काव्य पाठ की काफी पुरानी परम्परा है ,अभी भी पच्चीस तीस हज़ार लोगों की भीड़ इकठ्ठी होती है, सुनने के लिये । बहुत कविता प्रेमी है हमारे यहाँ । “ तो उन्होने कहा “आइ वुड सिम्पली लाइक टू रीड माई पोयम देयर । “ “ना” मैने कहा “यू विल बी डिसअपांइटेड “आप अपनी कविता वहाँ नहीं पढ़ेंगी क्योंकि वहाँ जो भीड़ इकठ्ठी होती है वह मज़े लूटने के लिये इकठ्ठी होती है । कविता का रसास्वादन करने के लिये इकठ्ठी नहीं होती ।इसलिये हम मुगालते में ना रहें कि कविता के रसिक वहाँ उपास्थित हैं । पुराने ज़माने में यह होता था

(प्रस्तुतकर्ता-शरद कोकास)