
हर कविता तीन स्तरों पर आलोचना से गुजरती है
पहला आलोचक स्वयं कवि होता है - कवि कर्म ईश्वरीय देन नहीं है । कविता लिखने की प्रेरणा हमे साहित्य और समाज से मिलती है लेकिन उसके लिए तैयारी स्वयं करनी होती है ।इसके लिए स्वयं का अध्ययन,अनुभवों को रचना में ढालने की शक्ति, साहित्य के इतिहास से परिचय, भाषा की समझ , कल्पनाशीलता , विचारधारा , दृष्टि , शब्दभंडार, राजनैतिक समझ और ऐसे ही अनेक तत्वों की आवश्यकता होती है । कविता लिखते समय कवि को निर्मम होकर अपनी रचना की आलोचना करनी चाहिये ।
दूसरा आलोचक कविता का पाठक है - कविता प्रकाशित होने के पश्चात जब पाठक के सन्मुख आती है तो वह उसका आस्वादन करता है ।मुख्यत: पाठक उस रचना में भाव ढूंढता है , कोई बिम्ब, कोई प्रतीक या कोई विचार उसे उद्वेलित करता है वह उस कविता में अपने आसपास के परिदृश्य की तलाश करता है ।पाठक के मन की कोई बात यदि उस कविता में हो तो वह उसे पढ़कर प्रसन्न होता है। यदि कविता में उसके आक्रोश को अभिव्यक्ति मिलती है या उसे अपनी समस्याओं का समाधान नज़र आता है तो वह कविता उसकी प्रिय कविताओं में शामिल हो जाती है । कुछ पाठक कविता में गेयता को पसंद करते है, वे उसकी लय एवं ताल पर मोहित होते हैं और कथ्य उनके लिए गौण हो जाता है ।
इस तरह पाठक के पास कविता का रसग्रहण करने का अपना पैमाना होता है ।कविता की ग्राह्यता पाठक के स्वयं के अध्ययन , उसकी विचारधारा तथा जानकारियों अथवा सूचनाओं के भंडार पर भी निर्भर करती है । कविता में पाठक की रुचि इन्ही सब बातों की वज़ह से होती है ।उसके लिए सबसे अच्छी कविता वह होती है जिसे पढ़कर अनायास उसका मन कह उठे .. ‘ अरे ! ऐसा तो मैं भी लिख सकता था ।‘
तीसरा आलोचक तो आलोचक है ही - इस आलोचक का काम इससे एक कदम आगे का है ।उसका काम कविता को पढ़ना या देखना मात्र नहीं है ।आलोचक का कार्य है कविता में अंतर्निहित अन्य तत्वों को पाठकों के सन्मुख रखना ताकि वे एक नई दृष्टि एवं नये उपकरणों के साथ कविता में मूल्यों की तलाश कर सकें ।आलोचक का यह कार्य उन कवियों के लिए भी ज़रुरी है जो केवल शब्दों की जोड़-तोड़ को या किसी विचार को तीव्रता के साथ कविता में प्रक्षेपित करने को ही कविता समझते हैं या जिनका कविता लिखने का उद्देश्य महज स्वांत:सुखाय, आत्माभिव्यक्ति या पाठकों का मनोरंजन है ।
वर्तमान समय में इस में लोकप्रियता का तत्व और जुड गया है जिसकी वज़ह से साहित्य में प्रदूषण की संभावनाएँ बढ़ गई हैं । इसके अतिरिक्त साहित्य में व्यक्तिवाद भी बढ़ता जा रहा है , व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के कारण जोड़-तोड़ की राजनीति साहित्य में भी प्रारंभ हो गई है , इस वजह से बहुत सारे अच्छे रचनाकार निराश हो चले हैं ।आलोचक का काम इस स्तर पर और भी महत्वपूर्ण हो जाता है । ( आगे जारी )
यह विचार आपको कैसे लगे ,आप कवि हों या कविता के पाठक , या साहित्य प्रेमी ,इस पर आपकी राय जानना ज़रूरी है - शरद कोकास