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मंगलवार, 7 जुलाई 2009
प्रियंकर पालीवाल ने कहा
हिन्दी कविता की समृद्ध परम्परा का मूल्यांकन करने में आलोचना असफल रही है . आलोचक नये कवियों पर लिखने से बचते रहे हैं उदासीनता और उपेक्षा का एक विराट सन्नाटा पसरा है जहाँ न्याय और अन्याय के प्रश्न बेमानी हैं .सवाल तो यह है कि आलोचकों के उदासीन रवैये पर दुखी कवि मित्रों ने स्वयं कितना साथियों पर लिखा है .मूल्यांकन तो बहुत बडा शब्द है.हिन्दी के बडे आलोचक अपनी बडी भूलों के लिये भी जाने जाते हैं.
(युवा आलोचक प्रियंकर पालीवाल का यह कथन साहित्यिक पत्रिका'समकालीन सृजन'(सम्पादक मानिक बच्छावत) के कविता अंक 'कविता इस समय ' से साभार,अपने कवि मित्रों और आलोचकों की प्रतिक्रिया के लिये .श्री प्रियंकर पालीवाल फेसबुक पर भी उपलब्ध हैं उनसे भी हम सम्वाद की अनुमति चाहते हैं)
आपका शरद कोकास
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हमारा उनसे पहले ही संवाद स्थापित है.
जवाब देंहटाएंwaahji waah!
जवाब देंहटाएंadbhut anand dene wala aalekh !
badhaai !