प्रमोद वर्मा ने कहा था
गद्य में रिदम,तुलसीदास और प्रेमचन्द की लोकप्रियता,मुक्तिबोध की जनस्वीकृति, ,नीरज की साहित्यिक स्वीकृति और गुलशन नन्दा की बिक्री,जैनेन्द्र की भैंस, लन्दन की कवि गोष्ठी
दूसरी बात ,मैं आपसे कहता हूँ क्या गद्य में रिदम नहीं होता ? क्या बोलते हुए,सामान्य बोलचाल की भाषा में , जैसा हम बोलते हैं उसमें यति और गति नहीं होती क्या ? हम कभी मन्द स्वर में ,कभी मध्य में कभी तार सप्तक में नहीं बोलते क्या? हमारे बोलने में ये उतार –चढ़ाव नहीं आया करते क्या,हममें से हर एक आदमी अपनी-अपनी तरह से नहीं बोलता? भाषा के साथ तो है ही यह बात । तो कुल मिलाकर यदि आप कहें कि प्रोज़ में रिदम नहीं होता तो मैं इस बात को नहीं मानता ।
कविता में जो रिदम है वह उसके भावों का रिदम है,वह गतिमयता हैतो इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप मात्रिक छन्द लिख रहे हैं,तुकांत लिख रहे हैं या अतुकांत लिख रहे हैं । संस्कृत में तो तमाम कवितायें अतुकांत हैं । तुकांत कविताओं की प्रगति तो हिन्दी ,उर्दू, और इधर की अन्य भाषाओं की कविता में है । ब्रह्म की परिभाषा नहीं हो सकती, ईश्वर क्या है यह नहीं जान सकते तो कविता को कैसे परिभाषित करेंगे ? तो कविता को अपरिभाषित ही रहने दीजिये ।इन चीज़ों का निर्णय नहीं होगा फिलहाल और ये बहस चलती रहेगी ।
अब नीरज और मुक्तिबोध को ही लीजिये । एक को साहित्य में स्वीकृति नहीं मिली,दूसरे को जनस्वीकृति नहीं मिली । मुक्तिबोध को जनस्वीकृति नहीं मिली नीरज को साहित्यिक स्वीकृति नहीं मिली ।मैं आपसे पूछता हूँ कौनसा लेखक आज सबसे ज़्यादा पढ़ा जाता है ? एक ज़माने में गुलशन नन्दा बहुत बड़े लेखक थे । एक संस्करण उनका निकलता था पाँच लाख प्रतियाँ उसकी बिक जाती थीं । तीन बरस बाद आप उसे ढूँढिये नहीं मिलती थी । तीन बरस क्या छह माह बाद नहीं मिलती थी । प्रेमचन्द के कितने संस्करण निकले होंगे ज़रा सोचिये आप । 1920-21 से लिख रहा है जो लेखक और जो आज भी खरीदा,पढ़ा और पढ़ाया जा रहा है,उसकी कितनी कापियाँ बिकी होंगी । सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला कवि ,तुलसीदास है । बावज़ूद इसके हम में से बहुत से कवि मंच में एक-एक लाख में कविता पढ़ जाते हैं कौन अधिक लोकप्रिय है ? लोकप्रियता की कसौटी दर असल क्या है कि आप एक साल में एक लाख पाठकों द्वारा पढ़ लिये गये या एक लाख श्रोताओं द्वारा सुन लिये गये या कि आप सौ साल दो सौ साल पाँच सौ साल या हज़ार साल तक पढ़े और सुने जाते रहे । कौन ज़्यादा लोकप्रिय है ?
तो ये बड़े हवाई शब्द हैं ।इनके कोई मायने नहीं हैं । मुक्तिबोध को जन स्वीकृति मिली हुई है । कौन जन किस जन की बात कर रहे हैं ? वो जन ? आज़ादी के पचास साल बाद भी शर्म नहीं आती हम को स्वीकार करते हुए कि बावन प्रतिशत भारतीय निरक्षर हैं और जो साक्षर हैं उनमें से कितने वास्तविक तौर पर शिक्षित हैं ..यह तो छोड़िये बड़ी बड़ी डिग्रियाँ हासिल करने वालों को भी मैं मात्र साक्षर मानता हूँ ..यह ऐसे लोग हैं । जैनेन्द्र जी से किसीने पूछा था जैनेन्द्र जी यह बताइये अकल बड़ी की भैंस ? जैनेन्द्र जी ने छूटते ही यह प्रश्न किया कि पहले यह बताओ मुझे कि किसकी अकल और किसकी भैंस ? अगर तुम ये कहोगे कि तुम्हारी अकल और मेरी भैंस तो मैं कहूंगा , जैनेन्द्र की भैंस बड़ी है । कुल मिलाकर ये कि किसकी स्वीकृति ?
लन्दन के एक अखबार में पढ़ा कि अमुक अमुक गार्डन में एक कवि गोष्ठी होने वाली है ,जिसमें टिकट लेकर सब आमंत्रित हैं । मैड्रिड पोएटिक सोसायटी की ओर से थी गोष्ठी ,सो टिकट ली और चले गये ।अद्भुत था वहाँ । हर महीने वह गोष्ठी होती थी जिसमें सौ-दो सौ कविता प्रेमी इकठ्ठे होते थे ।टी.वी.और बी.बी.सी. के तीन अच्छे उद्घोषक आमंत्रित होते थे जो उस महीने छपी श्रेष्ठ्तम पाँच –पाँच कविताओं का पाठ करते थे ।उसके बाद तीन आमंत्रित कवि अपनी कविताओं का पाठ करते थे ।तो कुछ लोगों को मालूम हुआ कि यह भारतीय आया है , यह भी कवि है । अब यह ब्राउन चेहरा तो वहाँ अलग से पहचान लिया जायेगा , तो उन्होने हमारा परिचय-वरिचय दिया और जब कॉफी ब्रेक हुआ तो उन्होने पूछा “ आपके यहाँ काव्यपाठ होता है? “ “हाँ” मैने कहा “हमारे यहाँ तो काव्य पाठ की काफी पुरानी परम्परा है ,अभी भी पच्चीस तीस हज़ार लोगों की भीड़ इकठ्ठी होती है, सुनने के लिये । बहुत कविता प्रेमी है हमारे यहाँ । “ तो उन्होने कहा “आइ वुड सिम्पली लाइक टू रीड माई पोयम देयर । “ “ना” मैने कहा “यू विल बी डिसअपांइटेड “आप अपनी कविता वहाँ नहीं पढ़ेंगी क्योंकि वहाँ जो भीड़ इकठ्ठी होती है वह मज़े लूटने के लिये इकठ्ठी होती है । कविता का रसास्वादन करने के लिये इकठ्ठी नहीं होती ।इसलिये हम मुगालते में ना रहें कि कविता के रसिक वहाँ उपास्थित हैं । पुराने ज़माने में यह होता था ।
(प्रस्तुतकर्ता-शरद कोकास)
Sirf jawab..."kavita nirashawadi hai.."
जवाब देंहटाएंis baat ka..to kayee baar us palkaa wahee saty hota hai..gar meree jeevenee kabhi padhen,to aisehee utar chadhaw ka safar hai..
Kabhi raushanee isee tarah chheen lee jaatee hai...aisa nahee,ki, ham usee mod pe theher jate hain...!
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(Aajtakyahantak pe padhen,'bole too kaun-see bolee?'...mazedaar sansmaran hain..!)