" मैं ‘ शब्द और कर्म ‘ के साथ ‘ साहित्य और इतिहास दृष्टि ‘ लेकर हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आया "
प्रो मैनेजर पाण्डेय बता रहे हैं कि वे आलोचना के क्षेत्र में कैसे आए । प्रो मैनेजर पाण्डेय से महावीर अग्रवाल द्वारा लिए गए साक्षात्कार का एक अंश साहित्यिक पत्रिका ‘ सापेक्ष ‘ से साभार ।
महावीर अग्रवाल : अपनी रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए बताइये की आपकी आलोचना के क्षेत्र में रुचि कैसे जागृत हुई ? आप कब से यह कार्य कर रहे हैं ? इस क्षेत्र को आपने क्यों चुना ?
प्रो मैनेजर पाण्डेय : आलोचना में रुचि आलोचना पढ़ते पढ़ते ही जगी । मैंने अपने छात्र जीवन में जिन आलोचकों को विशेष रूप से पढ़ा था उनमें आचार्य रामचंद्र शुक्ल , हजारी प्रसाद द्विवेदी , रामविलास शर्मा ,नन्ददुलारे वाजपेयी प्रमुख थे । एक तरह से इन आलोचकों की आलोचनाओं में निहित और व्यक्त अन्तर्विरोधों के बारे में सोचते हुए ही मुझे आलोचना के क्षेत्र में काम करने की प्रेरणा मिली । मैं उस समय अपनी पी एच डी के लिए ‘ भक्ति आंदोलन और सूरदास ‘ पर काम कर रहा था । मैंने अपना पहला आलोचनात्मक लेख ‘ भक्ति काव्य की लोकधर्मिता ‘ लिखा था जो डॉ त्रिभुवन सिंह द्वारा सम्पादित ‘ साहित्यिक निबंध ‘ नामक पुस्तक में 1968 में छपा था ।
उस समय प्रगतिशील लेखक संघ कम सक्रिय था लेकिन बनारस में प्रगतिशील लेखक बहुत सक्रिय थे । मैं बनारस के प्रगतिशील लेखकों की गोष्ठियों में भाग लेते हुए अपने विचारों को व्यवस्थित और विकसित कर रहा था । यह मेरी आलोचनात्मक चेतना के निर्माण का आरंभिक दौर था ।बाद में मैं 1971 में जोधपुर विश्वविद्यालय पहुँचा जहाँ डॉ नामवर सिंह पहले से मौजूद थे । वहाँ उनके साथ विभिन्न साहित्यिक प्रश्नों पर बातचीत करते हुए मैं आलोचना के क्षेत्र में बहुत अधिक सजग रूप से सक्रिय होने की कोशिश करने लगा । उस समय नामवर सिंह के सम्पादन में निकलने वाली पत्रिका ‘ आलोचना ‘ में मेरे लेख छपने लगे । 1975 में मैं सतना के प्रगतिशील लेखक सम्मेलन में शामिल हुआ था जिसमें परसाई जी भी मौजूद थे । उसमें मैंने एक लेख ‘ साहित्य के नये सौन्दर्यशास्त्र की ज़रूरत ‘ पढ़ा था जो बाद में पहल में प्रकाशित हुआ था ।
उस समय मैं मुक्तिबोध के आलोचनात्मक लेख से परिचित हुआ था । बाद में मैंने साहित्य के इतिहास दर्शन के क्षेत्र में काम करना शुरू किया और ‘ आलोचना ‘ पत्रिका में साहित्य व इतिहास दर्शन से संबन्धित चार लेख छपे , जिन्हे पाठकों ने बहुत पसन्द किया । वे लेख मेरी पुस्तक “ साहित्य व इतिहास दृष्टि में हैं । उसी बीच मेरे लेख विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में छपे थे वे ‘ शब्द और कर्म ‘ नामक मेरी पुस्तक मे संकलित हैं । इस तरह मैं ‘ शब्द और कर्म ‘ के साथ ‘ साहित्य और इतिहास दृष्टि ‘ लेकर हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आया ।
प्रो० मैनेजर पांडेय सर को जन्मदिन मुबारक और इस मुबारक मौके को सबके साथ साझा करने के लिए आपको भी मुबरकबाद!
जवाब देंहटाएंमेरी भी विनम्र शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंऔर प्रणाम स्वीकार हों !
आपको "सुगना फाऊंडेशन मेघलासिया"की तरफ से भारत के सबसे बड़े गौरक्षक भगवान श्री कृष्ण के जनमाष्टमी के पावन अवसर पर बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें लेकिन इसके साथ ही आज प्रण करें कि गौ माता की रक्षा करेएंगे और गौ माता की ह्त्या का विरोध करेएंगे!
जवाब देंहटाएंमेरा उदेसीय सिर्फ इतना है की
गौ माता की ह्त्या बंद हो और कुछ नहीं !
आपके सहयोग एवं स्नेह का सदैव आभरी हूँ
आपका सवाई सिंह राजपुरोहित
सबकी मनोकामना पूर्ण हो .. जन्माष्टमी की आपको भी बहुत बहुत शुभकामनायें