कमलेश्वर ने कहा था
साहित्य में तरह तरह के अंतर्विरोधों ने बड़ी दिक्कतें पैदा कीं । इस अंतरविरोध के कारण यह दिखाई पडता था कि साहित्य में आदमी यह सोचता है ,घर के मामले में ,परिवार के मामले में यह सोचता है ,समाज के मामले में यह सोचता है और राजनीति के मामले में यह सोचता है । तो यह जो अंतर्विरोध है ,इसके कारण रचना में जो दीप्ति और शक्ति आनी चाहिये वह नहीं आ पाती । इस तरह का बहुत लेखन होता है । मैं खुद आपसे कहता हूँ और क्षमा चाहता हूँ अपने तमाम साथियों को याद करते हुए कि जब नई कहानी का दौर आया तो उस दौर में हम कम से कम पूरे भारत में फैले हुए थे । कल्पना हैदराबाद से निकलती थी ,ज्ञानोदय कलकत्ते से निकलता था ,माध्यम निकलता था , पटना से चार-चार पत्रिकायें निकलती थीं । लगभग सौ लेखक थे , बड़ा लम्बा काँरवा था , लेकिन फिर सब कहाँ छूटते चले गये । आप सोचिये ! हम कहीं न कहीं रचना का अकेलापन झेल रहे हैं । जब लोग छूट गये तो रचना हमारी पूरक थी , क्योंकि जो हम नहीं लिख पाते थे , वह लिखता था , वह नहीं लिखता तो कोई तीसरा लिखता था । तो रचना का एक अनुपूरक दौर था । और वह पूरक रचना मिलकर एक बड़े साहित्य या बड़े सवाल का निर्माण करती थी । अभी यह बात आई कि हमारे पास सपना नहीं है ,तो मित्रवर ! एक सबसे बड़ी चीज़ यह है कि जिसके पास सपना नहीं है उसे तो कलम रख ही देनी चाहिये । खामखाँ लिख रहा है । अगर सपना नहीं है तो कलम की ज़रूरत ही नहीं है ।( वाराणसी में मई1999 में पत्रिका काशी प्रतिमान द्वारा आयोजित समकालीन हिन्दी लेखन विषयक गोष्ठी में कमलेश्वर जी द्वारा अध्यक्ष पद से व्यक्त विचार के अंश : “काशी प्रतिमान” से साभार )
" यह कमलेश्वर जी ने सिर्फ 10 वर्ष पहले कहा था ,मुझे लगता है सपना तो हर मनुष्य देखता है लेकिन हर मनुष्य लेखक नहीं होता । इसलिये लेखक होने के लिये सिर्फ सपना काफी नहीं है । "
आपका -शरद कोकास
लेखक होने के लिये सिर्फ सपना काफी नहीं है । "
जवाब देंहटाएंsahi baat
venus kesari
sharad ji sahi kaha aapne...aapko padh kar achha laga
जवाब देंहटाएंKhali sapna hone se koee lekhak nahee hota par lekhak hone ke liye sapna hona jaroore hai.
जवाब देंहटाएंशरदजी बात में दम है ।
जवाब देंहटाएंज़्यादा बड़ी बड़ी बातें करना तो केवल शब्द विलास होगा
जवाब देंहटाएंलेकिन इतना अवश्य कहना चाहूँगा कि लेखक
स्वप्नदृष्टा नहीं,
स्वप्नसृष्टा होता है
उसमे स्वप्न देखने की नहीं, दिखाने की तमीज होनी चाहिए
वह भीड़ का हिस्सा नहीं होता
कोई कथा - किस्सा नहीं होता
_______लेखक सतत सृजक होता है
_______और सृजक सपने नहीं देखते
लोगों के सपने पूर्ण करने में सहयोगी होते हैं.....
शरद भाई
जवाब देंहटाएंएक सार्थक तथा सार्वजनिक स्वप्न के बिना लेखन संभव नहीं है। यह एक बडा सच है।
वेणु याद आते हैं
न हो कुछ भी
सिर्फ़ स्वप्न हो
तब भी हो सकती है शुरुआत
और यह भी
एक शुरुआत ही तो है
कि वहां एक स्वप्न है।
आज कल कलम से लिखता कोन है जी? बात मै दम है, बिना सपने जिन्दगी भी तो अधूरी सी है..
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने
जवाब देंहटाएंSahi baat hai, sapne hi aage ki raah dikhate hain.
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।