कल दिनांक 19 मार्च को कवि केदारनाथ सिंह नहीं रहे .आज उनसे सुनिए उनकी कविता "हिंदी के बारे में एक हिंदी कवि का बयान "से यह अंश और पढ़िए उनकी पूरी कविता . (कृपया ऊपर के प्लेयर पर आवाज़ सुनें .)
हिंदी
के बारे में एक हिंदी कवि का बयान
मेरी
भाषा के लोग
केदारनाथ जी के साथ शरद कोकास |
मेरी
सड़क के लोग हैं
सड़क के
लोग सारी दुनिया के लोग
पिछली
रात मैंने एक सपना देखा
कि
दुनिया के सारे लोग
एक बस
में बैठे हैं
और
हिंदी बोल रहे हैं
फिर वह
पीली-सी बस
हवा में
गायब हो गई
और मेरे
पास बच गई सिर्फ़ मेरी हिंदी
जो
अंतिम सिक्के की तरह
हमेशा
बच जाती है मेरे पास
हर
मुश्किल में
कहती वह
कुछ नहीं
पर बिना
कहे भी जानती है मेरी जीभ
कि उसकी
खाल पर चोटों के
कितने
निशान हैं
कि आती
नहीं नींद उसकी कई संज्ञाओं को
दुखते
हैं अक्सर कई विशेषण
पर इन
सबके बीच
असंख्य
होठों पर
एक
छोटी-सी खुशी से थरथराती
रहती है यह !
पूछ लो
मेज से
दीवारों
से पूछ लो
छान
डालो फ़ाइलों के ऊंचे-ऊंचे
मनहूस
पहाड़
कहीं
मिलेगा ही नहीं
इसका एक भी
अक्षर
और यह
नहीं जानती इसके लिए
अगर ईश्वर
को नहीं
तो फिर किसे धन्यवाद
दे !
मेरा
अनुरोध है —
भरे
चौराहे पर करबद्ध अनुरोध —
कि राज
नहीं — भाषा
भाषा —
भाषा —
सिर्फ़ भाषा रहने दो
मेरी
भाषा को ।
इसमें
भरा है
पास-पड़ोस
और दूर-दराज़ की
इतनी
आवाजों का बूंद-बूंद अर्क
कि मैं
जब भी इसे बोलता हूं
तो कहीं
गहरे
अरबी
तुर्की
बांग्ला
तेलुगु
यहां तक
कि एक पत्ती के
हिलने
की आवाज भी
सब
बोलता हूं जरा-जरा
जब
बोलता हूं हिंदी
पर जब
भी बोलता हूं
यह लगता
है —
पूरे
व्याकरण में
एक कारक
की बेचैनी हूं
एक
तद्भव का दुख
तत्सम
के पड़ोस में
- केदार नाथ सिंह
प्रस्तुति: शरद कोकास
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